
उच्च शिक्षा प्राप्त करने व कई बड़े मंच में अपनी सादगी नहीं छोड़ी, धोती कुर्ता रहा इनका विशिष्ट परिधान, समाज में अजातशत्रु जैसी रही इनकी किरदारी और किसी से था न मनमुटाव।
नगर पंचायत पुसौर के वार्ड क्रमांक 4 के रहवासी 80 वर्शीय घनष्याम गुप्ता का बिते शुरक्रवार को निधन हो गया इनका पुरा परिवार कुछ वर्श पहले जगन्नाथ मंदिर के आसपास रहे गौटिया मुहल्ला में रहता था चूंकि ये गौटिया परिवार से ही है इनके पुर्वज के गौटियाई कार्यकाल के पुसौर में अब भी गौंटिया मुडा होना बताया जाता है। ये विलक्षण और तेज बुद्धि के होने के कारण शिक्षा में विषेश रूचि थी इसलिये ये 1962 के आसपास जब पुसौर में स्कुल नहीं था ये बाहर जाकर अपनी मेट्रीक व बैचलर की डिग्री हासिल की। इनके कुषाग्र बुद्धि के कारण इनके दादी अम्मा इन्हें डाक्टर कहकर पुकारती थीं इसलिये आज गांव में डाक्टर कहकर बुलाते थे। चित्रकारी और लेखनकला और स्वाध्याय में इनका विषेश लगाव था। सरकारी नौकरी में जाना इनका प्रारंभ से ही रूचि नहीं था चूंकि खेती के साथ जन सेवा करना इनका लक्ष्य था। बताया जाता है कि राजनीतिक पार्टीयों में कम्यूनिस्ट पार्टी के प्रति इनका रूझान रहा इसलिये जब इस पार्टी से जुडे सरिया के साहु, रायगढ के पापा नामक व्यक्ति से इनका सामना होता था तो बहुत लंबे समय तक स्थानीय, राश्ट्रीय और अंतर्राश्टीय स्तर में बातचीत होता था। पुसौर के ग्राम पंचायत कार्यकाल में कई बार पंच चुने गये थे वहीं कुछ साल पंचायत सचिव का भी कार्य किया था और सरपंच का चुनाव भी ये 2 बार लडने की बात कही जाती है। रामलीला में इन्हौने परशुराम का किरदार निभाया था और एक उडीया नाटक मातृहत्या में भी परशुराम का रोल अदा किया था दोनों रोल में प्राप्त हुये प्रसिद्धि का उनके समकालीन लोग अब भी तारीफ करते हैं। रामलीला में किरदारों को उनके रोल अनुसार वेष भुशा देना इनका अहम कार्य था। इनकी विष्वसनियता लोगों के बीच ऐसी थी कि आंख मुंद कर इन्हें आपसी विवाद, बंटवारा निपटाने के साथ साथ उसके दस्तावेज बनाने तक विष्वास करते रहे हैं। तात्कालीन समय में जब लोग मवेषी, जमीन जायदाद आदि खरीद बिक्री करते थे तो इन्हें बुलाते थे जिसका ये मय दस्तावेज के निपटारा करते थे वहीं संबंधित दस्तावेज में बकायदा बकलम के कालम में स्वयं हस्ताक्षर भी करते थे। रामायण गायन में अर्थिक एवं वादक के रूप में कई जगह देखे गये हैं। आम तौर पर ये जब अकेले होते थे तो निष्चित ही कोई गाना गुनगुनाया करते थे जिसमें एक छत्तीसगढी गीत ‘‘ तें अकेला जाबे हंसा मोर मरे के बेरा में तें अकेला जाबे‘‘। इस तरह उडीया और हिन्दी गीत भी ये गुनगुनाया करते थे। हंसमुख व्यवहार और भरोसे मंद व्यक्तित्व कहने से घनष्याम गुप्ता की छवि को लोग सामने रखते हैं जो उनके अंतिम क्षण तक रहा इस आषय से पुसौर व आस पास के लोगों के आखे आज उनके लिये नम हैं और उनके साथ बितायें हुये पलों को आपस में दुहरा रहे हैं। कुछ दिन पहले ही बाजार चौक में देष के यषस्वी प्रधानमंत्री अटलबिहारी बाजपेयी के प्रतिमा स्थापना के समय ये वहां मौजुद थे इनके धोती कुर्ता को पहने देख इन्हें अटल जी के मुर्ति के बगल में खडे कर फोटो लिये और सोषल मिडिया में साझा किया जिसे कई लोगों ने कामेंट किये। इनके अंत्येश्टि शनिवार को होना है जिसके लिये इनके 2 षिक्षक पुत्र तथा एक आर्टिस्ट पुत्र सहित परिवार के लोग व इनसे जुडे लोग तैयारी कर लिये हैं। इनके निधन को लेकर नगर अध्यक्ष मानी मोहित सतपथी, उपाध्यक्ष उमेष साव, पुर्व अध्यक्ष किषोर कसेर, रितेष थवाईत, रामलीला समिति अध्यक्ष बैकुण्ठ गुप्ता आदि लोगों ने संवेदना जताया है। शनिवार के लगभग 7 बजे उनके पार्थिव शरीर को गायत्री मंदिर होते हुए जगन्नाथ मंदिर परिसर लाया गया जहां कइयों ने उनके दर्शन किए इसी क्रम में शनि मंदिर से होते हुए पुनः उनके घर के आगे स्थित जुभी मुक्तिधाम में उनका दाह संस्कार हुआ।
