
वर्श 1975 से 80 तक के आसपास और इसके पुर्व व बाद भी कक्षा 3री से लेकर आठवीं तक भुगोल के पुस्तक मे पुसौर की प्रसिद्धि कांस पीतल के बर्तन सहित अन्य कलाकृति निर्माण के लिये जाना जाता है वहीं शासन प्रषासन के लोग भी इस कला को आगे बढाने कई तरह के प्रयास किये जाने की बात भी कही जाती है। कुछ साल पहले पुसौर के प्रत्येक वार्ड में कांस पीतल के बर्तन सहित गिनी, मजीरा, दिया, कलष आदि निर्माण होने की पुश्टी हुई है जो कुछ साल चलने के बाद धीरे धीरे कम होते हुये अब पुर्ण रूप से यह कलाकारी कार्य बंद हो चुका है जो अब केवल कागजों में सिमट कर रह गया है, क्या इसके लिये कोई जिम्मेदार है? ज्ञात हो कि पुसौर से 10 कि.मी. दुर एकताल के झारा जाति लोगो के मुर्तिकला को आगे बढाने षासन द्वारा प्रत्येक स्तर में प्रयास किया गया है जिसमें इनके लिये बाजार तलाषते हुये उन्हें आर्थिक रूप से भी सहयोग प्रदाय किया गया है और प्रायः प्रत्येक वर्श इनके लिये षासन द्वारा कुछ न कुछ ऐसे गतिविधियां अख्तियार की जाती रही है जिससे कि झारा जाति के लोग आत्मनिर्भर हों और उनका जीवन स्तर सुधर सके। इसी कडी में पुसौर के कसेर समाज के लोगों द्वारा किये गये मांग पर लगभग 25 वर्श पुर्व वृहद कंसेरा भवन भी निर्माण किया गया है ताकि वहां लोग अपना अपना बर्तन निर्माण कर सके। जानकारी के मुताविक कांस पीतल के बर्तन का उपयोग नही करने साथ ही महंगा होने के कारण कसेर समाज के लोगों द्वारा बर्तन निर्माण सहित अन्य गिनी मजिरा आदि का निर्माण नहीं कर रहे हैं। बताया जाता है कि मषीनों के कारण यह बंद के कगार पर पहुंच चुका है। जानकारों की मानें तो झारा जाति के लोगों के उत्थान के लिये जिस तरह षासन द्वारा साधन सुविधा जुटाये जा रहे हैं वह यदि कसेर समाज को भी मिले तो पुनः कांस्य नगरी पुसौर प्रतिजिवित हो सकता है ऐसा लोगों का मानना है। वर्तमान स्थिति में जो परिवार बर्तन निर्माण कार्य में जुटे हुये थे वे अब दुसरे आजीविका के जरिये अपना जीवन निर्वाह कर रहे हैं।
