कीर्तन गुरु राजेश थनापति के अगुवाई में गायक बलराम माहना, वादक तरुण साव आदि द्वारा लयबद्ध प्रस्तुति

कार्तिक पुर्णिमा के अवसर पर पुसौर के जगन्नाथ मंदिर में कभी अनंतमुखी भागवत पारायण होता था वहीं तात्कालीन कीर्तन पार्टी अपनी मधुर गायन के साथ समुचे पुसौर की परिक्रमा करते थे। इस पर्व पर तडके सुबह तालाब अथवा नदी में में प्रज्वलित दीप दान प्रवाह करने की भी परंपरा रही । प्रायः प्रत्येक घरों में तुलसी चैंरा होता था जो कार्तिक माह भर वहां रंगोली बनाकर माता तुलसी देवी की पुजा अर्चना की जाती थी जो अब कहीं कहीं ही देखने को मिल रहा है। जो लोग माह भर कार्तिक स्नान करते थे वे तालाब के रास्ते तक झाडु लगाते थे ताकि श्रद्धालु जन साफ सुथरे रास्ते से आवागमन कर सके। ये सारी परंपरा अब धीरे धीरे लुप्त हो गई है। बिते देव दिवाली कार्तिक पुर्णिमा के अवसर पर कुछ ही लोग दीप दान करके पर्व को संपन्न किया और पुसौर के कीर्तन पार्टी ये साबित किया कि आज वो पुण्य दिवस है जिसमें हम स्वच्छ एवं पवित्र होकर भगवान के प्रति अभार प्रकट करें और उनके द्वारा सुझाये गये सदाचरण का अनुसरण करें। जब लोग अपने नित्यकर्म करने का उपक्रम कर रहे थे उस समय ये धोती गमछा के परिधान में तैयार होकर ये कीर्तन पार्टी वर्तमान सामुदायिक भवन में स्थापित जगन्नाथ मंदिर के पास एकत्र हुये और अपने सभी बाद्य उपकरण तैयार होने के बाद जय राधा माधव जय कुंज बिहारी का कीर्तन आरम्भ किये इसी स्वर के साथ पुसौर के कई वार्डो का परिक्रमा भी किया, बीच बीच में अन्य भजन की प्रस्तुति हुई जहां श्रद्धालु जन इनका अभार प्रकट किया और कीर्तन टीम को यथा संभव अंषदान भी किया। जानकारों की माने तो इस कीर्तन पार्टी के जरिये ही मंदिर चौक पुसौर में कार्तिक पुर्णिमा को भव्यता देने कारगर साबित हुआ चूंकि मंदिर में नहीं अनन्तमुखी भागवत पारायण हो पाया और नहीं किसी प्रकार का अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम। बताया जाता है कि भागवत उडीया भाशा व लिपि में होने के कारण यह आयोजन नहीं हो पा रहा है चूंकि आज के स्थिति में उडीया पढने वालों की संख्या अब एक दो पर्सेन्ट ही रह गये है और लंबे समय तक बैठकर भागवत पाठ करने की क्षमता भी नहीं है। नगर उपाध्यक्ष उमेष साव ने कीर्तन पार्टी के इस आयोजन की सराहना किया और कहा कि हमारी संस्कृति किसी न किसी रूप बची रहेगी और इसे और आगे ले जाने हमारी जबाबदेही स्वीकार करनी होगी।
